सामान्य अवस्था: आयुर्वेद अनुसार मध्य जुलाई से लेकर मध्य सितम्बर तक के समय काल दरम्यान वर्षा ऋतु होती है जिसे अंग्रेजी में मॉनसून भी कहते है। इस ऋतु दरम्यान आकाश बादलों से भर जाता है और बारिश होती है। तालाब, नदी वग़ैरा पानी से भर जाते है। इस ऋतु दरम्यान आम्ल रस (खट्टा स्वाद) तथा पृथ्वी और अग्नि महाभूत प्रबल होते है। आयुर्वेद अनुसार इस ऋतु में भी इंसान की शक्ति कम हो जाती है तथा वात दोष की दुष्टि और पित्त दोष का संचय होता है एवं इंसान की अग्नि की भी दुष्टि होती है।
पथ्य आहार: आयुर्वेद अनुसार वर्षा ऋतु में आम्ल (खट्टे) और लवण (खारे) स्वाद वाले तथा चिपचिपे आहार का सेवन करना चाहिए। वर्षा ऋतु में पुराने जौ, चावल, गेहू वगेरे का सेवन करना चाहिए। आयुर्वेद में वर्षा ऋतु दरम्यान उबले हुए तथा औषधीय जल के सेवन का वर्णन भी है।
नदी जल, अति तरल आहार और मदिरा का त्याग करना चाहिए। पाचन में कठिन तथा भारी आहार जैसे मांस आदि का भी त्याग करना चाहिए।
पथ्य जीवनशैली: आयुर्वेद अनुसार वर्षा ऋतु दरम्यान उबले हुए पानी से नहाने के बाद पुरे शरीर पर तेल से मालिश करना हितकारक है। वर्षा ऋतु दरम्यान दूषित दोषो को बहार निकालने के लिए आयुर्वेद चिकित्सको द्वारा औषधीय बस्ती (मेडिकेटेड एनीमा) का प्रयोग भी किया जाता है।
वर्षा ऋतु दरम्यान वर्षा में भीगना, दिन में सोना, व्यायाम, अति परिश्रम, काम लिप्तता और नदी किनारे रहना टालना चाहिए।