SEASONAL REGIMEN

Hemant Ritucharya

हेमंत ऋतुचर्या

हेमंत ऋतुचर्या

सामान्य अवस्था:
आयुर्वेद के अनुसार मध्य नवंबर (१५ नवंबर) से लेकर मध्य जनवरी (१५ जनवरी) तक के समय काल के दौरान हेमंत ऋतु होती है, जिसे अंग्रेजी में “लेट ऑटम” भी कहते हैं। इस ऋतु के दौरान ठंडी हवाएँ चलने लगती हैं और सर्दी का अनुभव होता है। इस समय मधुर (मीठा) स्वाद तथा पृथ्वी और जल महाभूत प्रबल होते हैं। इस ऋतु में इंसान का बल सबसे अधिक होता है, दोषित पित्त का शमन होता है और अग्नि तेज हो जाती है।

पथ्य आहार:
आयुर्वेद के अनुसार हेमंत ऋतु में मीठे, खट्टे और खारे स्वाद वाले तथा चिपचिपे गुण वाले आहार का सेवन करना चाहिए। अनाज में नए चावल, आटे से बनी चीजें, मूंग आदि का सेवन करना चाहिए। विभिन्न प्रकार के मांस, चर्बी, दूध, दूध से बनी चीजें, गन्ना और तिल आदि का सेवन भी करना चाहिए। हल्के, ठंडे और रुक्ष गुण वाले आहार, जो वात का प्रकोप करते हैं, का त्याग करना चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार हेमंत ऋतु में कोल्डड्रिंक्स आदि का सेवन हानिकारक होता है।

पथ्य जीवनशैली:
आयुर्वेद के अनुसार हेमंत ऋतु में व्यायाम, शरीर और सिर की मालिश, गरम पानी का उपयोग, धूप में रहना (सन बाथ), शरीर पर अगरु का उपयोग, भारी वस्त्र पहनना और गर्म स्थान पर रहना चाहिए। हेमंत ऋतु के दौरान दिन में सोना, ठंडी हवाओं का सामना करना आदि से बचना चाहिए।

Shishir Ritucharya

शिशिर ऋतुचर्या

शिशिर ऋतुचर्या

सामान्य अवस्था:
आयुर्वेद के अनुसार मध्य जनवरी (१५ जनवरी) से लेकर मध्य मार्च (१५ मार्च) तक के समय काल को शिशिर कहा जाता है जिसे अंग्रेजी में “विंटर” भी कहते हैं। इस ऋतु के दौरान वातावरण ठंडी हवाओं के साथ ठंडा रहता है। इस ऋतु में तिक्त रस (कड़वा स्वाद) तथा आकाश महाभूत प्रबल होता है। आयुर्वेद के अनुसार इस ऋतु में इंसान की शक्ति कमजोर हो जाती है तथा वात दोष का संचय होता है एवं अग्नि बढ़ जाती है।

पथ्य आहार:
आयुर्वेद के अनुसार शिशिर ऋतु में ऐसे आहार का सेवन करना चाहिए जिसमें आम्ल रस (खट्टा स्वाद) प्रबल हो। अनाज, दाल, गेहूं के आटे से बनी वस्तुएं, नए चावल, गन्ने आदि का सेवन करना चाहिए। अदरक, लहसुन, हरीतकी, पिप्पली, गन्ना, दूध तथा दूध से बनी वस्तुओं का उपयोग आहार में करना चाहिए। कटु (तीखा), तिक्त (कड़वा) और कषाय (तुरा) रस (स्वाद) वाले आहार का त्याग करना चाहिए। हल्के (लघु) और ठंडे (शीत) आहार का भी त्याग करना चाहिए।

पथ्य जीवनशैली:
तेल या पाउडर से मालिश, गुनगुने पानी से स्नान, गर्म कपड़े पहनना और पर्याप्त सूर्य प्रकाश लेना चाहिए। वात प्रकोपकारी जीवनशैली का त्याग करना चाहिए जैसे अधिक बोलना, देर रात तक जागना, और ठंडी हवाओं का सामना करना आदि।

Sharad Ritucharya

शरद ऋतुचर्या

शरद ऋतुचर्या

सामान्य अवस्था:
आयुर्वेद अनुसार मध्य सितंबर (१५ सितंबर) से लेकर मध्य नवंबर (१५ नवंबर) तक के समय काल के दौरान शरद ऋतु होती है जिसे अंग्रेजी में “ऑटम” भी कहते हैं। इस ऋतु के दौरान सूरज अधिक चमकीला हो जाता है, आकाश साफ रहता है या कभी-कभी सफेद बादलों से भर जाता है और धरती गीली मिट्टी से ढक जाती है। इस ऋतु के दौरान लवण रस (खारा स्वाद) तथा जल और अग्नि महाभूत प्रबल होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार इस ऋतु में इंसान की शक्ति मध्यम रहती है, वात दोष का शमन होता है और पित्त दोष की दुष्टि होती है एवं इंसान की अग्नि भी बढ़ती है।

पथ्य आहार:
आयुर्वेद के अनुसार शरद ऋतु में मधुर (मीठा), तिक्त (कड़वा) स्वाद वाले तथा हल्के और ठंडे गुण वाले आहार का सेवन करना चाहिए। दूषित पित्त का शमन करने वाले आहार का सेवन करना चाहिए। शरद ऋतु में गेहूं, मूंग, मिस्री, परवल और सूखे प्रदेश में रहने वाले जानवरों का मांस (जांगल मांस) आदि का सेवन करना चाहिए। गरम गुण वाले, कड़वे तथा तुरा (कषाय) आहारों का त्याग करना चाहिए। इस ऋतु के दौरान आहार जैसे दही, समुद्री जानवरों का मांस, तेल, चर्बी आदि का भी त्याग करना चाहिए।

पथ्य जीवनशैली:
आयुर्वेद के अनुसार शरद ऋतु के दौरान केवल भूख लगने पर ही भोजन करना चाहिए। दिन में सूर्यकिरणों से और रात्रि में चंद्रकिरणों से शुद्ध किया गया पानी ही पीना चाहिए तथा स्नान के लिए उपयोग करना चाहिए। फूलों की माला पहनना, और शरीर पर चंदन का पेस्ट लगाना लाभकारी होता है। ऐसा माना जाता है कि रात्रि में पहले ३ घंटे का चंद्र प्रकाश स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। शरद ऋतु के दौरान दिन में सोना, अति भोजन और अत्यधिक धूप में रहना टालना चाहिए।

Grishma Ritucharya

ग्रीष्म ऋतुचर्या

ग्रीष्म ऋतुचर्या

सामान्य अवस्था:
आयुर्वेद अनुसार मध्य मई (१५ मई) से लेकर मध्य जुलाई (१५ जुलाई) तक के समय काल दरम्यान ग्रीष्म ऋतु होती है जिसे अंग्रेजी में “समर” भी कहते हैं। इस ऋतु के दौरान तीव्र गर्मी तथा अस्वस्थ हवाएँ चलती हैं। इस ऋतु में कटु रस (तीखा स्वाद) तथा अग्नि और वायु महाभूत प्रबल होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार इस ऋतु में इंसान की शक्ति कम हो जाती है तथा वात दोष का संचय होता है एवं इंसान की अग्नि मध्यम अवस्था में रहती है।

पथ्य आहार:
आयुर्वेद के अनुसार ग्रीष्म ऋतु में ऐसे आहार का सेवन करना चाहिए जो पाचन में हल्के हों जैसे कि चावल, जौ आदि जो मधुर (मीठे), स्निग्ध (चिपचिपे), शीत (ठंडे) और द्रव (तरल) गुण वाले हों। ग्रीष्म ऋतु में बहुत सारा पानी तथा अन्य तरल पदार्थ जैसे कि छाछ, फलों का रस, आम रस, मांसरस आदि का प्रयोग करना लाभदायक है। नमकीन, उष्ण (गरम) तथा कटु (तीखे) और आम्ल (खट्टे) स्वाद वाले आहारों का त्याग करना चाहिए।

पथ्य जीवनशैली:
आयुर्वेद के अनुसार ग्रीष्म ऋतु में ठंडे वातावरण में रहना, शरीर पर चंदन तथा अन्य खुशबूदार पेस्ट्स लगाना, पुष्पों का इस्तेमाल करना, हल्के कपड़े पहनना तथा दिन में सोना मदद रूप होता है। रात्रि समय में हवा की लहरों के साथ चंद्रमा के ठंडे प्रकाश का आनंद उठाना चाहिए। अति व्यायाम एवं कठोर परिश्रम का त्याग करना चाहिए। आयुर्वेद में ग्रीष्म ऋतु के दौरान अति काम लिप्तता तथा शराब के त्याग का भी उल्लेख किया गया है।

Vasant Rituchary

वसंत ऋतुचर्या

वसंत ऋतुचर्या

 

सामान्य अवस्था: आयुर्वेद अनुसार मध्य मार्च (१५ मार्च) से लेकर मध्य मई (१५ मई) तक के समय काल को वसंत कहा जाता है जिसे अंग्रेजी में स्प्रिंग भी कहते है। इस ऋतु दरम्यान कषाय रस (तुरा स्वाद) तथा वायु और पृथ्वी महाभूत प्रबल होते है। आयुर्वेद अनुसार इस ऋतु में इंसान की शक्ति मध्यम अवस्था में रहती है तथा कफ दोष का प्रकोप होता है एवं अग्नि मंद हो जाती है।

पथ्य आहार: आयुर्वेद अनुसार वसंत ऋतु में ऐसे आहार का सेवन करना चाहिए जो आसानी से पाचन हो जाये। पुराने जौ, गेहू, चावल आदि अनाज तथा मसूर, मूंगदाल आदि दाल का सेवन करना चाहिए। कटु (तीखा), तिक्त (कड़वा) और कषाय (तुरा) रस (स्वाद) वाले आहार का सेवन करना चाहिए। इसके अलावा आयुर्वेद में वसंत ऋतु दरम्यान आहार में मधु का इस्तेमाल करने का भी उल्लेख है। आसानी से पाचन होने वाले माँस जैसे की खरगोश के माँस आदि का सेवन भी करना चाहिए। पाचन होने में कठिन आहारों का त्याग करना चाहिए। शीत (ठंडे), स्निग्ध (चिपचिपे), गुरु (भारी), आम्ल (खट्टे) तथा मधुर (मीठे) आहारों का भी त्याग करना चाहिए।

पथ्य जीवनशैली: आयुर्वेद अनुसार वसंत ऋतु दरम्यान व्यायाम और गरम पानी से स्नान करना चाहिए। चंदन, केसर, अगरु आदि के पाउडर से मालिश करना चाहिए जिसे उदवर्तन कहते है। अन्य आयुर्वेद विधिया जैसे की कुल्ला करना, धूमपान करना, आंजन करना वगेरे का आचरण करना चाहिए। इस मौसम में दिन में सोना पूरी तरह से हानिकारक है।

वर्षा ऋतुचर्या:

सामान्य अवस्था: आयुर्वेद अनुसार मध्य जुलाई से लेकर मध्य सितम्बर तक के समय काल दरम्यान वर्षा ऋतु होती है जिसे अंग्रेजी में मॉनसून भी कहते है। इस ऋतु दरम्यान आकाश बादलों से भर जाता है और बारिश होती है। तालाब, नदी वग़ैरा पानी से भर जाते है। इस ऋतु दरम्यान आम्ल रस (खट्टा स्वाद) तथा पृथ्वी और अग्नि महाभूत प्रबल होते है। आयुर्वेद अनुसार इस ऋतु में भी इंसान की शक्ति कम हो जाती है तथा वात दोष  की दुष्टि और  पित्त दोष का संचय होता है एवं इंसान की अग्नि की भी दुष्टि होती है।

पथ्य आहार: आयुर्वेद अनुसार वर्षा ऋतु में आम्ल (खट्टे) और लवण (खारे) स्वाद वाले तथा चिपचिपे आहार का सेवन करना चाहिए। वर्षा ऋतु में पुराने जौ, चावल, गेहू वगेरे का सेवन करना चाहिए। आयुर्वेद में वर्षा ऋतु दरम्यान उबले हुए तथा औषधीय जल के सेवन का वर्णन भी है।

नदी जल, अति तरल आहार और मदिरा का त्याग करना चाहिए। पाचन में कठिन तथा भारी आहार जैसे मांस आदि का भी त्याग करना चाहिए।

पथ्य जीवनशैली: आयुर्वेद अनुसार वर्षा ऋतु दरम्यान उबले हुए पानी से नहाने के बाद पुरे शरीर पर तेल से मालिश करना हितकारक है। वर्षा ऋतु दरम्यान दूषित दोषो को बहार निकालने के लिए आयुर्वेद चिकित्सको द्वारा औषधीय बस्ती (मेडिकेटेड एनीमा) का प्रयोग भी किया जाता है।

वर्षा ऋतु दरम्यान वर्षा में भीगना, दिन में सोना, व्यायाम, अति परिश्रम, काम लिप्तता और नदी किनारे रहना टालना चाहिए।

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